रात ऐसी कि कभी जिस का सवेरा न हुआ दर्द ऐसा कि कोई जिस का मसीहा न हुआ राज़ इक दिल में लिए फिरते हैं सहरा सहरा कोई हमराज़ तो हो शहर में ऐसा न हुआ मेरे एहसास की क़िस्मत में ही महरूमी थी कभी सोचा न हुआ और कभी चाहा न हुआ दिल के आईने में हर अक्स है धुँदला धुँदला लाख सूरत है मगर कोई भी तुम सा न हुआ बज़्म-ए-अग़्यार में 'शाहिद' के उड़े थे पुर्ज़े कोई चर्चा न हुआ कोई तमाशा न हुआ