रूह से कब ये जिस्म जुदा है By Ghazal << थोड़ा सा माहौल बनाना होता... शौक़ के ख़्वाब-ए-परेशाँ क... >> रूह से कब ये जिस्म जुदा है इन बातों में क्या रक्खा है रफ़्ता रफ़्ता वो भी मुझ को भूल रहा है भूल चुका है रुत पैराहन बदल रही है पत्ता पत्ता टूट रहा है इन आँखों का हर अफ़्साना मेरे ही ख़्वाबों की सदा है हर चेहरा जाना-पहचाना शहर ही अपना छोटा सा है Share on: