संग उस के ही सफ़र हो क्यूँकर ज़ीस्त पहले सी बसर हो क्यूँकर जी जो चाहे है कि मर जाऊँ मैं रात से पहले सहर हो क्यूँकर अब कहाँ क़ुव्वत-ए-गोयाई है उन की बातों का असर हो क्यूँकर ज़िंदगी एक सफ़र है सच है हो गुमाँ कोई मगर हो क्यूँकर जब जिए कोई किसी की ख़ातिर इस को अपनी भी ख़बर हो क्यूँकर दिल ही पहलू से निकल जाए जो आह हैराँ भी जिगर हो क्यूँकर रूह सरशार करे वो 'हसरत' मय-कदे पर भी नज़र हो क्यूँकर