शायद कोई निगाह करे मेरी ज़ात पर दस्तक तो दे रहा हूँ दर-ए-काएनात पर दुश्मन से कह रहा हूँ तिरी अंजुमन का राज़ या फूल रख रहा हूँ मैं शोले के हात पर अपना भी क़त्ल हम ने कई ढंग से किया अब कोई चौंकता ही नहीं हादसात पर बेहोशियों को नींद से निस्बत ज़रूर है कुछ ख़ार भी बिछा ले रिदा-ए-हयात पर ऐ 'नूर' वो तो हुक्म-ए-सज़ा दे के चल दिया लफ़्ज़ों का सारा ख़ून रहा मेरी ज़ात पर