शायद मुझे तुम ने कभी समझा भी नहीं था मैं वर्ना ज़माने में मुअम्मा भी नहीं था कुछ देर चमकता मिरे घर में तो वो कैसे वो तो मिरी पलकों का सितारा भी नहीं था जैसा मुझे बर्बाद-ए-जहाँ उस ने किया है इस तरह तो मैं ने कभी सोचा भी नहीं था देखा तो ये सोचा कि हमेशा से हूँ वाक़िफ़ पहले तो अगरचे उसे देखा भी नहीं था आवाज़ दिए जाता था दिल दूर से उस को गो उस ने पलट कर मुझे देखा भी नहीं था वाक़िफ़ हुए दुनिया से तो मालूम हुआ ये अपना जिसे समझे थे वो अपना भी नहीं था कहने की है ये बात कि वो छोड़ता दुनिया सच्चा था वो 'आदिल' मगर इतना भी नहीं था