सुलगती आँखों ने अश्कों से दोस्ती कर ली हमारे ख़्वाबों ने कल रात ख़ुद-कुशी कर ली हर एक सम्त था तूफ़ाँ भँवर में थी कश्ती और इस पे हम ने किनारों से दुश्मनी कर ली अँधेरी रात थी घर में कोई चराग़ न था जला के अपना ही दिल हम ने रौशनी कर ली हमारे लब अभी तिश्ना हैं गुफ़्तुगू के लिए अगरचे हम ने निगाहों से बात भी कर ली यक़ीन ख़ुद को नहीं है मगर हक़ीक़त है तिरे बग़ैर बसर हम ने ज़िंदगी कर ली तुम्हारे दम से थीं गुलशन में रौनक़ें सारी तुम्हारे बा'द बहारों ने ख़ुद-कुशी कर ली वो दर्द बन के हमेशा हमारे दिल में रहा जब हद से दर्द बढ़ा हम ने शायरी कर ली ठिकाना ढूँड रहे हैं परिंदे फिर कोई शजर ने तुंद हवाओं से दोस्ती कर ली 'फहीम' उस की निगाहें हैं झील की मानिंद हम उन में कूद गए और शनावरी कर ली