तंदुरुस्तों में न बीमारों के बीच इश्क़ के हूँ मैं दिल-अफ़गारों के बीच इश्क़ है सैर-ए-ख़ुदा ऐ दोस्ताँ इस लिए अशरफ़ है असरारों के बीच मंज़िल-ए-दूर-ओ-दराज़-ए-इश्क़ में ग़म को पाया हम ने ग़म-ख़्वारों के बीच दोस्ताँ है ला-दवा दूर-अज़-शिफ़ा इश्क़ का आज़ार आज़ारों के बीच अब तो है कुंज-ए-क़फ़स घर पर कभी बुलबुलो थे हम भी गुलज़ारों के बीच क्या कहें हम कह नहीं सकते हैं यार अंदकों में है कि बिस्यारों के बीच जिस के जूया मोमिन ओ मुशरिक हैं वो सुब्बहों में है न ज़ुन्नारों के बीच रहम कर हम पर भी दिल-बर हैं तिरे इश्क़ के हाथों से आवारों के बीच गुल ने ता दावा किया रुख़ से तिरे बे-क़दर बकता है बाज़ारों के बीच या हुसैन-इब्न-ए-अली 'मातम' को भी कीजे दाख़िल अपने ज़व्वारों के बीच