तेग़-ए-निगह-ए-दीदा-ए-ख़ूँ-ख़ार निकाली क्यूँ आप ने उश्शाक़ पे तलवार निकाली भूले हैं ग़ज़ालान-ए-हरम राह ख़ता से तुम ने अजब अंदाज़ की रफ़्तार निकाली धड़का मिरे नाले का रहा मुर्ग़-ए-सहर को आवाज़ शब-ए-वस्ल न ज़िन्हार निकाली हर घर में कहे रखते हैं कोहराम पड़ेगा गर लाश हमारी सर-ए-बाज़ार निकाली आख़िर मिरी तुर्बत से उगी है गुल-ए-नर्गिस क्या बाद-ए-फ़ना हसरत-ए-दीदार निकाली मैं वस्ल का साइल हूँ न वा'दे का तलब-गार बातों में अबस आप ने तकरार निकाली जल जाएगा ये ख़िर्मन-ए-हस्ती अभी ऐ दिल सीने से अगर आह-ए-शरर-बार निकाली दिल ले के भी 'रा'ना' का किया पास न अफ़्सोस कुछ हसरत-ए-दिल तू ने न अय्यार निकाली