तेरी महफ़िल से मैं क्या जाता हूँ दिल के मलबे में दबा जाता हूँ मैं रफ़ू-गर के इशारे पर हूँ चाक-दामाँ हूँ सिया जाता हूँ देख कर मुझ को यूँ नालाँ मत हो तू कहे तो मैं चला जाता हूँ तेरे कूचे से गुज़र होता है आप ही आप रुका जाता हूँ जुर्म क्या है ये तो मालूम नहीं पस-ए-दीवार चुना जाता हूँ भीक माँगी है मोहब्बत की मगर अपनी नज़रों में गिरा जाता हूँ अह्द करता हूँ भुलाने का तुझे फिर तिरी बातों में आ जाता हूँ मैं सुख़न तेरा नहीं हूँ फिर भी तेरे शे'रों में पढ़ा जाता हूँ आरज़ू चाँद सितारों की है आसमानों में उड़ा जाता हूँ उस ने सावन की तमन्ना की है अपनी आँखों से बहा जाता हूँ मैं इस क़दर रास है तन्हाई मुझे अपने साए से जुदा जाता हूँ लोग पागल तो समझते होंगे मैं जो बे-वक़्त हँसा जाता हूँ वो कहीं और से देता है सदा मैं कहीं और चला जाता हूँ दे के लालच तिरे ख़्वाबों का मैं अपनी आँखों को सिला जाता हूँ ग़ैर फिर ग़ैर हैं क्या कीजे गिला धोका अपनों से ही खा जाता हूँ आग ख़ुद दिल में लगा रक्खी है अपने हाथों ही जला जाता हूँ ज़िंदा रहने की वजह सिर्फ़ है तू तेरे वा'दों पे जिया जाता हूँ एक दीवार उठाने के लिए एक दीवार गिरा जाता हूँ तोड़ा जाता है मुझे रोज़ 'फहीम' रोज़ ता'मीर किया जाता हूँ