तू अगर देखे सादगी मेरी फिर तबीअ'त है शायरी मेरी दर्द-ओ-ग़म में वफ़ा मिलाई गई और तख़्लीक़ की गई मेरी मुझ को इतना बताओ सच सच तुम याद आती नहीं कभी मेरी हर अँधेरा मिटा सकूँ मैं यहाँ दूर तक जाए रौशनी मेरी अब भी तुझ से वफ़ा निभाउँगी अब भी बाक़ी है ज़िंदगी मेरी कितने दिन से तिरा गुज़र न हुआ कितनी वीराँ हुई गली मेरी मैं भी शब में फ़लक पे होती हूँ कौन देखेगा चाँदनी मेरी तेरी साँसों की ख़ुशबुओं में हूँ तुझ को ज़ाहिर न हो कमी मेरी फिर 'अनन्या' तुझे वो याद आया कह रही आँखों की नमी मेरी