उन को दिल दे के पशेमानी है ये भी इक तरह की नादानी है वस्ल से आज नया है इंकार तुम ने कब बात मिरी मानी है आप देते हैं तसल्ली किस को हम ने अब और ही कुछ ठानी है हाल बिन पूछे कहे जाता हूँ अपने मतलब की ये नादानी है किस क़दर बार हूँ ग़म-ख़्वारों पर क्या सुबुक मेरी गिराँ-जानी है घर बुला कर वो मुझे लौटते हैं ये नई तरह की मेहमानी है हम से वहशत की न ले ओ मजनूँ हम ने भी ख़ाक बहुत छानी है ख़ाक उड़ती है जिधर जाता हूँ क्या मुक़द्दर की परेशानी है घर भी वीराना नज़र आता है हाए क्या बे-सर-ओ-सामानी है आई क्यूँ उन की शिकायत लब तक हम को ख़ुद उस की पशेमानी है कहीं दो दिन न रहा जम के 'हफ़ीज़' एक आवारा है सैलानी है