उस परेशाँ ज़ुल्फ़ से जब सामना हो जाएगा पेच-ए-बाद-ए-सुब्ह इक दम में हवा हो जाएगा उस गली में मुंतशिर कर दे हमारी ख़ाक को कुछ तो अर्ज़-ए-मुद्दआ बाद-ए-सबा हो जाएगा बस जिगर को लुत्फ़-ए-यक-तीर-ए-मिज़ा दरकार है कार-ए-ग़म-ख़्वारी निगाह-ए-आश्ना हो जाएगा वस्ल में बंद-ए-क़बा को मिन्नत-ए-अंगुश्त क्या गर्मी-ए-अनफ़ास की इक रौ से वा हो जाएगा सूरत-ए-गुल वो लब-ए-लालीं दम-ए-गुफ़्तार है देखना ख़ामोश हो तो ग़ुंचा सा हो जाएगा