उठ जाने पर तो जल्वे तुम्हारे निहाँ कहाँ तार-ए-नज़र है पर्दा कोई दरमियाँ कहाँ कुल-काएनात क्या है ब-जुज़ यास-ओ-आरज़ू दिल से ज़ियादा वुसअत-ए-कौन-ओ-मकाँ कहाँ उट्ठे हैं अब निगाह से पर्दे फ़रेब के जुज़ दर्द-ओ-ग़म ख़ुशी का जहाँ में निशाँ कहाँ 'कैफ़ी' करिश्मे अपने ही कैफ़-ए-नज़र के हैं इस दहर-ए-बे-बिसात में रंगीनियाँ कहाँ