वो जिन्हें दश्त-ए-अना से पार होना था हुए हम को लेकिन साहब-ए-किरदार होना था हुए कब तलक जीते विसालों की तमन्नाओं में लोग ज़िंदगी से एक दिन बेज़ार होना था हुए और थे वो जिन को जागीरें अता उस से हुईं अपनी क़िस्मत में तो बस फ़नकार होना था हुए कुछ परिंदों को मिली ऊँची उड़ानों की सज़ा कुछ को लेकिन क़ैद में पर-दार होना था हुए हम को बनना था कड़ी ज़ंजीर की हम बन गए वो जिन्हें पाज़ेब की झंकार होना था हुए कोशिश-ए-पैहम से भी कोई न बन पाई लकीर खींचना थे दाएरे परकार होना था हुए वार अपने आप पर करना था 'असअद' तह-ब-तह हम को इक टूटी हुई तलवार होना था हुए