वो मिरा अक्स है साया है कि पैकर क्या है मैं नहीं हूँ तो मिरे क़द के बराबर क्या है हर-नफ़स ज़ेहन में उठता हुआ महशर क्या है मौज-दर-मौज मिरे जिस्म के अंदर क्या है बंद आँखों से भी देखो कभी आईने को ख़ुद समझ लोगे कि एहसास का पत्थर क्या है दर्द के एक ही झोंके ने उठाया तूफ़ाँ किस को मालूम कि यादों का समुंदर क्या है क़ैद कर रक्खा है लम्हात की दीवारों ने उन से निकलूँ तो ज़रा देखूँ कि बाहर क्या है जिस को देखो वही पत्थर है लिए हाथों में देखना ये है कि शीशे का मुक़द्दर क्या है इक सनम रोज़ तराशा और उसे तोड़ दिया ज़ेहन-ए-इंसाँ है 'ब्राहीम' कि 'आज़र' क्या है झील में हँसता हुआ नन्हा सा मासूम कँवल कितना मंज़र है सुहाना पस-ए-मंज़र क्या है अपनी ही आग में हर लम्हा सुलगते रहना और फ़नकार की तक़दीर में 'जौहर' क्या है