वो मुझ को आज़माने वाले क्या हुए मुझे लहू रुलाने वाले क्या हुए मिरी ख़ता बताने वाले क्या हुए मुझे सज़ा सुनाने वाले क्या हुए वो नफ़रतों के क़ाफ़िलों के दरमियाँ मोहब्बतें लुटाने वाले क्या हुए ज़मीन पूछती है आसमान से वो इंक़लाब लाने वाले क्या हुए जिगर पे ज़ख़्म हैं नए-नए सभी जो ज़ख़्म थे पुराने वाले क्या हुए जुदा न होंगे मुझ से इस दरोग़ का मुझे यक़ीं दिलाने वाले क्या हुए ये रास्ते में आने वाले लोग हैं वो रास्ता दिखाने वाले क्या हुए ये मुझ से दूर जाने वाले कौन हैं मिरे क़रीब आने वाले क्या हुए जो मुझ को कह रहे थे हार जाएगा यहीं तो थे ज़माने वाले क्या हुए कहाँ से आ बसे हैं ये दरोग़-गो जहाँ को सच बताने वाले क्या हुए उजाड़ मय-कदे से पूछिए कोई वो पीने और पिलाने वाले क्या हुए