वो शख़्स जिस ने ख़ुद अपना लहू पिया होगा जिया तो होगा मगर कस तरह जिया होगा तुम्हारे शहर में आने की जिस को हसरत थी तुम्हारे शहर में आ कर वो रो पड़ा होगा किसी की याद की आहट सी है दर-ए-दिल पर किसी ने आज मिरा नाम ले लिया होगा वो अजनबी तिरी बाँहों में जो रहा शब भर किसे ख़बर कि वो दिन भर कहाँ रहा होगा तुम्हारे सेहन-ए-चमन में खिला हुआ ग़ुंचा किसे ख़बर मिरी क़िस्मत पे हँस रहा होगा