ये तो सहरा है यहाँ ठंडी हवा कब आएगी यार, तुम को साँस लेने की अदा कब आएगी कूच करना चाहते हैं फिर मिरी बस्ती के लोग फिर तिरी आवाज़ ऐ कोह-ए-निदा कब आएगी नस्ल-ए-ताज़ा, मैं तुझे क्या तजरबे अपने बताऊँ तेरे बढ़ते जिस्म पर मेरी क़बा कब आएगी सर-बरहना बीबियों के बाल चाँदी हो गए ख़ेमे फिर इस्तादा कब होंगे रिदा कब आएगी ताक़ में कब तक जलेगा ये चराग़-ए-इंतिज़ार इस तरफ़ शब-ए-गश्त लोगों की सदा कब आएगी मेरी मिट्टी में भी कुछ पौदे नुमू-आमादा हैं तू मिरे आँगन तक ऐ काली घटा कब आएगी