ज़िंदगी की जो क़द्र-ओ-क़ीमत है सब फ़क़त मौत की बदौलत है भाई-चारा न दोस्ती न ख़ुलूस सब की तह में कोई ज़रूरत है मैं यक़ीनन तिरी बदौलत हूँ और सब कुछ मिरी बदौलत है दह्र है मदरसा मोअल्लिम वक़्त और हस्ती किताब-ए-हिकमत है कितने अच्छे हैं लोग खुल जाए इक बुरे शख़्स की ज़रूरत है तुम ख़ुदा की तलाश में गुम हो मुझ को इंसान की ज़रूरत है कुछ तो मौका-परस्त हैं हम भी और कुछ वक़्त की ज़रूरत है मेरे अंदर जो शख़्स है 'ज़ेबा' उस में मुझ में बड़ी अदावत है