ज़िंदगी किस मोड़ पर ले जाएगी सोचा न था पाँव में बेड़ी पड़ी थी दूर तक रस्ता न था दरमियाँ आ जाएगी मेरी अना की मस्लहत उस से मिल कर यूँ बिछड़ जाऊँगा अंदेशा न था हर तरफ़ था सामने नज़रों के बहर-ए-बे-कराँ प्यास मेरी जो बुझाता एक भी क़तरा न था किस लिए आता नहीं मुझ को नज़र मेरा ज़मीर आइनों का अक्स यारो इस क़दर धुँदला न था ज़िंदगी सारी गुनाहों में गुज़ारी ऐ 'ज़फ़र' लोग कहते थे मुझे अच्छा मगर अच्छा न था