डूबने से जब बचाया मैं ने उन को तैर के तो विज़िटिंग कार्ड अपना दे के वो कहने लगे शुक्रिया मुमकिन नहीं है आप के एहसान का फिर भी मुझ से इस पते पर आप मिलिएगा ज़रा देखते ही कार्ड उन का खिल गया दिल का गुलाब चीफ़ एडीटर थे लिटरेरी रिसाले के जनाब दूसरे दिन उन से मिलने जब मैं दफ़्तर में गया साथ सोफ़े पर बिठाया चाय का ऑर्डर दिया फिर कहा ये दे के मुझ को एक मोटी सी रक़म गर क़ुबूल उफ़तद ज़हे इज़्ज़-ओ-शरफ़ ऐ मोहतरम मैं ने वापस की रक़म कह के कि हज़रत शुक्रिया अपनी ग़ज़लों का पुलंदा उन के आगे रख दिया पढ़ के वो ग़ज़लों को मेरी बोले ये तहक़ीर से आप तो शाइ'र बड़े हैं 'शाद' 'ग़ालिब' 'मीर' से 'जामई' साहब ज़रा इक और एहसाँ कीजिए अब मुझे तालाब ही में डूब मरने दीजिए