धूप खड़ी थी बाहर इंतिज़ार में हमारे कि हमें जला कर कर दे राख लेकिन हम मौत से बे-ख़बर छोटे से रेस्तोराँ सिपला में बैठे देख रहे थे मुस्तक़बिल के ख़्वाब अम्न और ख़िदमत की अलामत सफ़ेद वर्दी ने जब ये हमें बताया कि शहर में हिंदू-मुस्लिम फ़साद हो गया है तो हाथों से हम उस के ठंडे पानी से भरे हुए गिलास ले कर पी गए धूप के अज़ाब से हम भाग कर यहाँ आए थे हम ने अपने कान बंद कर लिए और खो गए अपनी बातों में लेकिन दूसरे टेबलों की प्लेटों में अफ़्वाहें खनकती रहीं बाहर धूप खड़ी थी इंतिज़ार में हमारे कि हमें जला कर कर दे राख