दूसरे लम्हे का ख़ौफ़ By Nazm << ए'तिराफ़ कोई भी काम सरसरी न करो >> अभी मुट्ठियों में हवा क़ैद है अभी आँख का रंग मैला नहीं है यही वक़्त है चल पड़ोगे तो मंज़िल क़दम दो क़दम है वगरना अभी इक पहर बा'द जलता हुआ सुर्ख़ सूरज सरों पर चमकने लगेगा हमें फिर किसी पेड़ की रेज़ा-रेज़ा पिघलती हुई छाँव में साँस लेना पड़ेगा Share on: