कल इक बुजु़र्गवार से कुछ बहस हो गई क्या गुफ़्तुगू हुई ये ज़रा सुन लें आप भी मैं ने कहा जनाब से महँगाई है बहुत बोले तुम्हारी आमद-ए-बालाई है बहुत मैं बोला पेट्रोल की क़ीमत पे कुछ कहो कहने लगे कि महँगा है पैदल चला करो मैं ने कहा कि प्याज़ का लहसन का क्या करें कहने लगे बघार में ज़ीरा लिया करें मैं ने कहा कि गर्मी में बिजली का क्या करें कहने लगे कि हाथ से पंखा झला करें मैं ने कहा ट्रेन में है भीड़ किस क़दर बोले कि क्यों भटकते हो हर रोज़ इधर-उधर मैं ने कहा कि कुर्सी के आते हैं मुझ को ख़्वाब बोले कि रोज़ आयत-ए-कुर्सी पढ़ो जनाब मैं ने कहा कि पानी की क़िल्लत भी है जनाब कहने लगे कि पानी के बदले पियो शराब मैं ने कहा कि शायरी मुझ को सिखाइए बोले मुशायरों में मिरे शेर गाइए मैं ने कहा मुशाएरा लूटेंगी शाएरात बोले इसी लिए तो हुई शाइ'रों को मात मैं बोला शेर मैं भी सुनाता हूँ ला-जवाब बोले कि है तुम्हारा तरन्नुम बहुत ख़राब मैं ने कहा न काम है ने कोई कारोबार कहने लगे कि शे'र कहो रोज़ बे-शुमार मैं ने कहा कि धूप में गर्मी में क्या करें बोले कि घर में बीवी की सूरत तका करें