ऐ मिरे शाइ'र-ए-क़द-आवर-ए-शीरीं-गुफ़्तार लब-ए-अफ़्कार को बख़्शा है तबस्सुम तू ने दिल की ख़ामोश उमंगों को ज़बाँ बख़्शी है रूह-ए-अफ़्सुर्दा को बख़्शा है तरन्नुम तू ने तेरे सीने में जो था शो'ला-ए-अफ़्कार निहाँ नख़्ल-ए-बातिल की हर इक शाख़ जला दी उस ने पूरबी साज़ पे जो तू ने तराना छेड़ा बज़्म-ए-मग़रिब में भी इक आग लगा दी उस ने है ये तस्लीम गुरुदेव वतन में तेरे ज़िंदगी ख़ाक-बसर आज नज़र आती है जिस तरफ़ देखिए है तीरा-दिली का मंज़र रौशनी शहर-बदर आज नज़र आती है क़ौल तेरा ये मुझे याद है 'टैगोर' मगर तीरगी लाख बढ़े उस का है अंजाम सहर