इन को सज्दा करो ये हैं ख़ाक़ान-ए-वक़्त इन के क़दमों पे झुकते हैं शाहों के सर इन के दर पर रहा करते हैं हाजिबान-ए-किराम इन की ख़ल्वत की ज़ीनत कनीज़ान-ए-सीमीं-बदन इन को सज्दा करो नाम का इन के कलिमा पढ़ो पीर-ओ-मुर्शिद हैं ये ये हैं मुश्किल-कुशा शाह-ओ-दरवेश सब इन के हैं ज़ल्ला-ख़्वार इन के लब पर है क़ुरआन दिल में ख़ुदा इन के पाँव पे ख़म है सर-ए-इत्तिक़ा हूर-ओ-ग़िल्माँ हैं इन के ग़ुलाम इन को सज्दा करो नाम का इन के कलिमा पढ़ो ये सियासत के इक मर्द-ए-मैदान हैं ख़ाक-ए-पा इन की है सुर्मा-ए-चश्म-ए-अहल-ए-ख़िरद क़िबला-ए-अहल-ए-हाजत हैं ये इन से क़ाएम भरम क़ौम का सरज़मीं मुल्क की इन से है रश्क-ए-अर्श-ए-बरीं ठोकरों में हैं इन की वज़ीर-ओ-अमीर इन को सज्दा करो नाम का इन के कलिमा पढ़ो नफ़्स-ए-सरकश मिरा रोज़ सुनता रहा सर भी धुनता रहा ख़म न लेकिन हुआ मेरा सर दर पे ख़ाक़ान के मुर्शिद-ए-वक़्त के पाँव पर क़िबला-ए-अहल-ए-हाजत की चौखट पे भी और फिर यूँ हुआ मेरा सर हो गया अपने आगे ही ख़म