शाख़ पर इक पेड़ की दो कबूतर माइल-ए-राज़-ओ-नियाज़ मुर्ग़-ज़ारों में अनादिल की चहक आरिज़ों पर लाला-ज़ारों की लहक हर गली में ज़ुल्फ़-ए-मुश्कीं की महक माँग में सिन्दूर की लाली होंट पर ख़ंदाँ चमन मय-कदे में दिल के रक़्साँ आरज़ूओं की दुल्हन हर क़दम पर कहकशाँ ही कहकशाँ कूचा-ओ-बाज़ार में मदरसों में और मिलों में गाँव में और शहर में हर तरफ़ ज़ीस्त की जल्वागरी रौशनी ही रौशनी मस्जिदों में मसनवी-ए-मौलवी-ए-मानवी महफ़िलों में 'मीर' ओ 'ग़ालिब' की ग़ज़ल मा'रकों में शोला-अफ़्शाँ नज़रुल-ए-आतिश-बयाँ रेडियो पर शाइर-ए-मशरिक़ की नज़्में मंदिरों में सूरदास और अरबिंदो के भजन शाहराह-ए-वक़्त पर ज़िंदगी के संग-ए-मील थी निगार-ए-ज़ीस्त कल यूँ जवाँ हर-दम रवाँ पैहम रवाँ पेड़ नंगे शाख़ से लटका हुआ सर किसी मासूम का और नीचे जिस्म से चिमटा हुआ ग़ोल गिध का कूचा-ओ-बाज़ार में बे-कसी नौहागरी कार-ख़ानों में मशीनें दम-ब-ख़ुद मदरसों में नौहा-ख़्वाँ इल्म-ओ-हिकमत के इमाम कैम्पों में ज़िंदगी ख़ाक बरसर नाला बर-लब चश्म-ए-तर और सड़कों पर दनदनाती गाड़ियाँ जिन के चेहरे पर मुनक़्क़श रेड क्रॉस हर तरफ़ मौत की जल्वागरी तीरगी ही तीरगी मस्जिदों में ख़ून के धब्बे नुमायाँ जा-ब-जा महफ़िलों में ख़ामुशी नग़्मा-सरा रेडियो ख़ामोश टेलीविज़न सर-निगूँ है निगार-ए-ज़ीस्त आज मुज़्महिल दामन-दरीदा नक़्श-ए-ग़म नाला-कुनाँ