कश्मकश By Nazm << एक नज़्म तुम्हारा शुक्रिया >> चारों सम्त से तूफ़ाँ उमडें और मैं अकेला तन्हा जान दर्द की राहों में हलकान क्या करूँ जब अपने ही पर अपने पैरों ज़मीं पे आन धँसे हों सोचता हूँ अब परों से नाता तोड़ लूँ या पाँव यहीं पर छोड़ दूँ Share on: