मोहब्बत जिस में लग़्ज़िश भी हुसूल-ए-कामरानी है मोहब्बत जिस की हर काविश सुरूर-ए-जावेदानी है मोहब्बत जिस में ग़म भी इंतिहा-ए-शादमानी है मोहब्बत जिस की तफ़्सीर-ओ-वज़ाहत बे-ज़बानी है मोहब्बत जिस में रूपोशी भी इक इज़हार हो जाए मोहब्बत जिस में ख़ामोशी लब-ए-गुफ़्तार हो जाए मोहब्बत जिस की आतिश में बक़ा पाते हैं परवाने मोहब्बत जिस की आबादी में हैं आबाद मस्ताने मोहब्बत जिस की वुसअ'त को निज़ाम-ए-होश क्या जाने मोहब्बत जिस को अफ़्साना बना रक्खा है दुनिया ने मोहब्बत इब्तिदा कहते हैं लफ़्ज़-ए-वाह से जिस की मोहब्बत इंतिहा सुनते हैं लफ़्ज़-ए-आह से जिस की मोहब्बत जिस की रानाई गुलों में मुस्कुराती है मोहब्बत जो नज़र को जल्वा-ए-फ़ितरत दिखाती है मोहब्बत जो कमाल-ए-हुस्न को यकता बनाती है मोहब्बत जिस में ग़म-आगीं तमन्ना चैन पाती है मोहब्बत जिस पे क़ाएम इम्बिसात-ए-ग़ैर-फ़ानी है मोहब्बत जिस से वाबस्ता नशात-ए-जावेदानी है मोहब्बत जिस को बहर-ए-ज़िंदगी का नाख़ुदा कहिए मोहब्बत जिस को आलम में फ़ना-ना-आश्ना कहिए मोहब्बत जिस को फ़ानूस-ए-मसर्रत की ज़िया कहिए मोहब्बत जिस को लफ़्ज़-ए-आम में लुत्फ़-ए-वफ़ा कहिए मोहब्बत जो बशर के साथ मिटती है न मरती है मोहब्बत रूह में जो अर्श-ए-आज़म से उतरती है मोहब्बत जो कभी ग़म है कभी आज़ाद हसरत है मोहब्बत जो कभी सरमाया-ए-कैफ़-ए-मसर्रत है मोहब्बत जिस की मुश्किल इक हयात-अफ़रोज़ लज़्ज़त है मोहब्बत जिस का हर अंदाज़ जादू है करामत है वो जज़्बा है जो आईन-ए-ख़िरद से दूर रहता है ये एहसास-ए-मुक़द्दस क़ल्ब में मस्तूर रहता है