न जाने कितने दिन गुज़रे न कोई कॉल न मैसेज न कोई राब्ता रखा तुम्हें मैं याद तो हूँ ना या मुझ को भूल बैठे हो कहाँ अपना हमेशा साथ रहने का इरादा था कि चाहे जो भी हो जाए कभी भी हम न बिछड़ेंगे तुम्हारा भी तो वा'दा था तुम्हें मालूम है कैसे तुम्हारे बिन रहा हूँ मैं मैं शब भर जागता और चाँद से बातें किया करता कहीं जब बात आती थी तुम्हारे हुस्न की तो मैं उलझ पड़ता था उस से भी तुम्हारे हुस्न के हक़ में दलीलें मेरी सुन सुन कर सितारे हँसने लगते थे तुम्हारी वापसी के ख़्वाब मुझ को दिन में आते थे अरे देखो ये मैं भी ना बड़ा पागल हूँ जान-ए-जाँ ये भी क्या वक़्त है कोई शिकायत का चलो छोड़ो हटाओ सब जनम-दिन है तुम्हारा आज कि शिकवे और शिकायत को तो सारी उम्र बाक़ी है तुम्हें ये दिन मुबारक हो तुम्हारा दिन मुबारक हो