मोहब्बत पेश-क़दमी करती है और अपनी फ़ौज में किसी सिपाही को भरती नहीं करती किसी टैंक को अपने साथ नहीं रखती कोई बकतर-बंद गाड़ी या तोप-ख़ाना अपनी हिफ़ाज़त के लिए इस्तिमाल नहीं करती किसी तय्यारे से मैदान-ए-जंग का जाएज़ा नहीं लेती मोहब्बत पेश-क़दमी करती है और सारी दुनिया के तीर ज़हर में बुझा लिए जाते हैं सारे नेज़ा-बाज़ घात लगा के बैठ जाते हैं सारी तलवारें नियाम से बाहर आ जाती हैं उसे अपनी टापों तले रौंदने के लिए शह-सवार तय्यार हो जाते हैं बादशाहों का ग़ुस्सा काली आँधी बन के उस तरफ़ बढ़ने लगता है अपने दिल पे हाथ रख के मोहब्बत पेश-क़दमी करती है और उस का जहाज़ कभी ग़र्क़ नहीं होता उस का अस्लहा कभी ख़त्म नहीं होता मोहब्बत की हमेशा जारी रहने वाली ये पेश-क़दमी कोई रोक नहीं पाता थक-हार के उस के साथ साथ चलने लगता है