सर-बसर इक उलझती पहेली हूँ और मेरी उलझन की सुलझन भी दुश्वार है तागा तागा मुझे कौन खोले मुझे रंग-दर-रंग और हर्फ़-दर-हर्फ़ परखे कहीं ऐसी चश्म-ए-फुसूँ-कार है तो बताओ ऐ मिरी बे-दिली के शिकस्ता किनारो मिरे ख़्वाब-ए-हस्ती के मौहूम रेशम को किस धूप की ज़र्द दीमक ने चाटा कौन सी ख़्वाहिशों की हरी टहनियों पर बरहना हवाओं के पंजे पड़े किस तलब की कथा उन के रास्तों में कहीं राह-ए-गुम-कर्दा रहरव की सूरत ख़जिल और कम-रख़्त रहने लगी मैं उदासी की गहरी सहेली हूँ तीखी पहेली हूँ और मेरी उलझन की सुलझन भी दुश्वार है मैं युगों से किसी दर्द की ख़ुश-हुनर उँगलियों की तुनुक-ताब पोरों से अपना पता पूछती हूँ बहुत कार-ए-उक़्दा-कुशाई कठिन है मगर मैं किसी रंज-ए-बरसर ख़याल-ए-जुनूँ-पेशा की आरज़ू कर रही हूँ ये गुंजल सुलझ जाए इस धुन में दिल के नशेबों को क्या क्या लहू कर रही हूँ