क्या ये ज़रूरी है हम सारी मंफ़ी बातें याद करें उस ने हम से कब किस मोड़ पे क्या चाहा था हम ने ख़ुद-ग़र्ज़ी के थाल में क्या क्या उस को नज़्र किया था किस ने झूट से थोड़ा सा सच क़र्ज़ लिया था किस का जज़्बा वहम की ऊन में उलझ गया था कब तक इस ला-हासिल दुख में ख़ुद को हम बर्बाद करें क्या ये ज़रूरी है हम सारी मंफ़ी बातें याद करें यादें बे-इम्कान फ़ज़ा में ताज़ा हवा भी ला सकती हैं पाँव किस का किस रस्ते पर ग़लत उठा था किस ने कोताही मानी थी कौन अपनी ज़िद पर आख़िर तक अड़ा रहा था इस का फ़र्क़ दिखा सकती हैं क्यों फिर हम सोचों की कोई हद कोई मीआ'द करें क्या ये ज़रूरी है हम सारी मंफ़ी बातें याद करें