वो लम्हे जब वजूद में बारूद भर जाता है सोच कहती है कि हर शय फ़ना हो सकती है महज़ ज़बान से फिस्ले लफ़्ज़ अंदर के ख़ाली-पन को मुसल्लत कर दें ऐसा ख़ाली-पन क़ुबूल करने में दुश्वारी होती है तुम्हारा शुक्रिया दरांती की नोक देर तक कच्ची ज़मीन को कुरेदती रही और उस में से ख़ून न निकला तहों के नीचे फ़स्लें उगती रही होंगी किसी को क्या ख़बर होती है बे-ख़बरी की बुनियाद पर दुनिया आबाद होती है आदमी के सिवा बाक़ी हर शय अपनी मौज़ूईयत के मारूज़ से वाक़िफ़ रहती है तुम्हारा शुक्रिया हमारे इस क़ुसूर के लिए कि मावरा की पुर-कैफ़ फ़ज़ा मोहब्बत के गिर्द लिपटी रहती है और पथरीली ज़मीन की कशिश हमें दुख देती रहती है तुम्हारे बिना तसव्वुर से रिश्ता नहीं जुड़ता दुख की उँगलियाँ होंटों पर नहीं बजतीं रास्तों के टेढ़े और सीधे-पन में खोए आदमी पर फ़रामोश ख़बरें इल्क़ा होती हैं तुम्हारा शुक्रिया रेत ठंडी रहती है यहाँ तक कि अंदर खींच लेती है और ज़र्रात पॉपकॉर्न की मानिंद उछल कूद करते हैं एक हाथ मोहब्बत भरा बालों को छूता है ये धनक भरा जज़्बा धँसाता है अपने बोझ से ख़बरों की बारिश से मोहब्बत दुख और दर्द की कह देने से ये सब कह देने से रास्तों के सीधे और टेढ़े-पन जैसा ख़ाली-पन मुसल्लत होता है इस क़ुसूर के लिए कि हम उसे क़ुबूल कर लेते हैं