मल्गजी अर्ज़-ए-ग़म ज़र्द सा आसमाँ और उफ़ुक़-ता-उफ़ुक़ और शफ़क़-दर-शफ़क़ सुरमई बादलों में उदासी के रंग उस के कमरे के माहौल में इक मलाल-आफ़रीं कैफ़ियत उस की नर्गिस सी आँखों में लर्ज़ां हिनाई निशाँ अल-अमाँ इस का ग़ुंचा-दहन अध-खुले फूल सा उस के रुख़्सार पर सुर्ख़ियों की फबन और बुर्राक़ हाथों पे रखी हुई ज़िंदगी वो मिरी ज़िंदगी दर्द के सिलसिले फूल अफ़्सुर्दा कलियाँ निढाल खंडरों की मिसाल बाम उजड़े हुए हैरतों के सफ़र हिजरतों के नगर और बे-रंग अफ़्सुर्दा पज़मुर्दा अतराफ़ का शोर-ओ-शर उस की यादों के दुख उस की दूरी के ग़म ना-रसाई के अरमान और कर्ब की धुँद में उस की हिजरत के दुख मैं जो पलटूँ तो माज़ी की बेज़ारीयाँ बाल खोले हुए मातमी रंग में पर-फ़िशाँ एक बर्ज़ख़ की वो रात थी गूँजती रात थी जबकि कमरे में सब जम्अ' थे उस ने मुझ से कहा चलो आज बाहर का मौसम बहुत दिल-नशीं है