इधर तेरे कूचे से मेरा गुज़र बहाने से वो तेरा ले जाना घर ज़माना लड़कपन का रंगीन था कि तू शे'र-ओ-नग़मे का शौक़ीन था बड़ी देर तक सिलसिला-ए-सुख़न मिरी शख़्सियत मेरा अंदाज़-ए-फ़न सराहा किया तू जो अशआ'र को तशफ़्फ़ी हुई तेरे फ़नकार को यहीं से जुड़ा सिलसिला-ए-हयात बदल सी गई थी मिरी काएनात अजब दर्द सीने में पलता रहा दिया सा हवाओं में जलता रहा बिला-वज्ह फिरना गली में तिरी कि थम कर वहीं रह गई ज़िंदगी वो कोहसार वो बर्फ़ पर चाँदनी उधर चाँद चढ़ता इधर चाँदनी वो तन्हाइयाँ दर्द का वो सफ़र तसव्वुर में मैं ग़र्क़ था सर-बसर अचानक जो तू ने नज़र फेर ली दुखों की मिरे दिल को जागीर दी कहीं और जा ख़ुद बसेरा किया इधर दिल में आहों ने डेरा किया जो इज़हार को मेरी आँखों में थे वो जुगनू तो मिट्टी में जज़्ब हो चुके कहो कुछ मिरी याद आती भी है ख़लिश दिल की तुझ को सताती भी है मिरे चार-सू है उदासी मुहीत कहूँ किस तरह मैं वो पहले से गीत असर कुछ भी शे'रों में बाक़ी नहीं वही बज़्म है पर वो साक़ी नहीं जो गुज़रे कभी तुझ को मेरा ख़याल नज़र दिल-गिरफ़्ता पे तू आ के डाल ज़माना हुआ तेरे दर्शन किए बहुत चाक सीने के मैं ने सीए किसी तौर अब दिल बहलता नहीं घड़ी-भर को भी चैन मिलता नहीं सनम कोई मिलने की तदबीर कर मुआ'फ़ अब मिरे दिल की तक़्सीर कर