दर-हक़ीक़त इत्तिसाल-ए-जिस्म-ओ-जाँ है ज़िंदगी By Sher << दामन पे लोटने लगे गिर गिर... रहज़नों के हाथ सारा इंतिज... >> दर-हक़ीक़त इत्तिसाल-ए-जिस्म-ओ-जाँ है ज़िंदगी ये हक़ीक़त है कि अर्बाब-ए-हिमम के वास्ते Share on: