वतन को फूँक रहे हैं बहुत से अहल-ए-वतन By Sher << ग़लत बातों को ख़ामोशी से ... एक दो बार तो रोकूँगा मुरव... >> वतन को फूँक रहे हैं बहुत से अहल-ए-वतन चराग़ घर के हैं सरगर्म घर जलाने में Share on: