ये महर-ओ-माह-ओ-कवाकिब की बज़्म-ए-ला-महदूद By Sher << तिरे नज़दीक आ कर सोचता हू... इश्क़ का बंदा भी हूँ काफ़... >> ये महर-ओ-माह-ओ-कवाकिब की बज़्म-ए-ला-महदूद सला-ए-दावत-ए-पर्वाज़ है बशर के लिए Share on: