कहने से न मनअ' कर कहूँगा तू मेरी न सुन मगर कहूँगा तुम आप ही आए यूँ ही सच है नाले को न बे-असर कहूँगा गर कुछ भी सुनेंगे वो शब-ए-वस्ल क्या क्या न में ता-सहर कहूँगा कहते हैं जो चाहते हैं दुश्मन मैं और तुम्हें फ़ित्ना-गर कहूँगा कहते तो ये हो कि तू है अच्छा मानोगे बुरा अगर कहूँगा यूँ देख के मुझ को मुस्कुराना फिर तुम को मैं बे-ख़बर कहूँगा इक बात लिखी है क्या ही मैं ने तुझ से तो न नामा-बर कहूँगा कब तुम तो कहोगे मुझ से पूछो मैं बाइस-ए-दर्द-ए-सर कहूँगा तुझ से ही छुपाऊँगा ग़म अपना तुझ से ही कहूँगा गर कहूँगा मालूम है मुझ को जो कहोगे मैं तुम से भी पेश-तर कहूँगा हैरत से कुछ उन से कह सकूँगा भूलूँगा का इधर उधर कहूँगा कुछ दर्द-ए-जिगर का होगा बाइस क्यूँ तुझ से मैं चारा-गर कहूँगा अब हाल-ए-'निज़ाम' कुछ न पूछो ग़म होगा तुम्हें भी गर कहूँगा
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