अलग होने पे आमादा हुआ हैयक़ीनन दुख बहुत ज़ियादा हुआ हैबिछड़ कर बाग़ से भँवरे ने पूछाये गुल क्यों सूख कर काँटा हुआ हैपरिंदे को ख़बर पहुँचाऊँ कैसेशजर में जाल इक डाला हुआ हैमैं केवल रूह छू पाऊँगा उस कीयही शुरूआ'त में वा'दा हुआ हैमहज़ क़स्में वो खाए जा रहा हैबदन पर झूट को लादा हुआ हैमोहब्बत का यही हासिल रहा हैमोहब्बत करके पछतावा हुआ हैOm Awasthi