ग़ज़ल

ग़ज़ल

आन को दें ईमान पे तरजीह, वाह रे वाह
वहशी को इंसान पे तरजीह, वाह रे वाह


मात्रा मोड़ के, कायदे तोड़ के, बोले गुरजी
दीजो बहर को ज्ञान पे तरजीह, वाह रे वाह


ख़ुद तो 'सुबहू', 'ईमां', 'सामां' लिखके खिसके-
'नादां' को 'नादान' पे तरजीह, वाह रे वाह


चार छूट जब तुमने ली, दो हम क्यूं ना लें !?
गुज़रे को उन्वान पे तरजीह, वाह रे वाह


संस्कृत बोलो, फ़ारसी बोलो, ख़ुश भी हो लो
मुश्क़िल को आसान पे तरजीह, वाह रे वाह


अढ़सठ तमग़े, साठ डिग्रियां, बातें थुलथुल
मैल को जैसे कान पे तरजीह, वाह रे वाह


अकादमिक बाड़े में अदब के साथ कबाड़े-
रट्टू को गुनवान पे तरजीह, वाह रे वाह


दुधमुही मूरत, मीठा साग़र, अफ़ीमी सीरत-
सूरत को विज्ञान पे तरजीह, वाह रे वाह


सूरत-मूरत, छबियां-डिबियां, मिलना-जुलना
ज़ाहिर को ईमान पे तरजीह, वाह रे वाह


(गुरजी=गुरुजी=उस्ताद)

-संजय ग्रोवर

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