ऐसे हसीं के इश्क़ में है बे-क़रार दिल
By nawab-umrao-bahadur-dilerApril 5, 2022
ऐसे हसीं के इश्क़ में है बे-क़रार दिल
सदक़े हैं जिस की एक अदा पर हज़ार दिल
जब माँगते हैं सब सनम-ए-रोज़गार दिल
इतने कहाँ से लाऊँ मैं परवरदिगार दिल
बेज़ार ज़िंदगी से है लैल-ओ-नहार दिल
जिस रोज़ से हुज़ूर को करता है प्यार दिल
क्या सोचते हो उस को निशाना बताओ तुम
है नावक-ए-मिज़ा का तुम्हारे शिकार दिल
बौछार हो रही है जो तीर-ए-निगाह की
सीना है चाक-चाक हमारा फ़िगार दिल
ग़म्ज़ा को दूँ करिश्मा-ए-नाज़-ओ-अदा को दूँ
किस तरह एक दिल के बनें तीन चार दिल
क्या क्या उठाईं हिज्र-ए-सनम में मुसीबतें
बरसों रहा है आठ पहर बे-क़रार दिल
दफ़्न इस में कुश्ता हो के हुईं कितनी हसरतें
मदफ़न बना है सीना तो लौह-ए-मज़ार दिल
ज़ाहिद ख़याल-ए-यार तो हर-दम है जागुज़ीँ
क्यूँकर करूँ मैं हूर-ए-जिनाँ पर निसार दिल
करने लगा है मुझ से बहुत कज-अदाइयाँ
अब बुत हुआ है जैसे तिरा राज़दार दिल
ठहरा न एक दम कभी सोज़-ए-फ़िराक़ में
सीमाब-वार अपना रहा बे-क़रार दिल
देखा कोई हसीन तो क्या क्या फड़क उठा
बेचैन हो गया मिरा बे-इख़्तियार दिल
भूला है तेरी याद बुतों के ख़याल में
ऐसा दिया था क्यों मुझे परवरदिगार दिल
आओ जो मेरे घर में तो सौ जान से करूँ
चितवन पर आँख सदक़े अदा पर निसार दिल
होता नहीं है ईद को भी ग़म ग़लत 'दिलेर'
यारान-ए-रफ़्तगाँ का बना सोगवार दिल
सदक़े हैं जिस की एक अदा पर हज़ार दिल
जब माँगते हैं सब सनम-ए-रोज़गार दिल
इतने कहाँ से लाऊँ मैं परवरदिगार दिल
बेज़ार ज़िंदगी से है लैल-ओ-नहार दिल
जिस रोज़ से हुज़ूर को करता है प्यार दिल
क्या सोचते हो उस को निशाना बताओ तुम
है नावक-ए-मिज़ा का तुम्हारे शिकार दिल
बौछार हो रही है जो तीर-ए-निगाह की
सीना है चाक-चाक हमारा फ़िगार दिल
ग़म्ज़ा को दूँ करिश्मा-ए-नाज़-ओ-अदा को दूँ
किस तरह एक दिल के बनें तीन चार दिल
क्या क्या उठाईं हिज्र-ए-सनम में मुसीबतें
बरसों रहा है आठ पहर बे-क़रार दिल
दफ़्न इस में कुश्ता हो के हुईं कितनी हसरतें
मदफ़न बना है सीना तो लौह-ए-मज़ार दिल
ज़ाहिद ख़याल-ए-यार तो हर-दम है जागुज़ीँ
क्यूँकर करूँ मैं हूर-ए-जिनाँ पर निसार दिल
करने लगा है मुझ से बहुत कज-अदाइयाँ
अब बुत हुआ है जैसे तिरा राज़दार दिल
ठहरा न एक दम कभी सोज़-ए-फ़िराक़ में
सीमाब-वार अपना रहा बे-क़रार दिल
देखा कोई हसीन तो क्या क्या फड़क उठा
बेचैन हो गया मिरा बे-इख़्तियार दिल
भूला है तेरी याद बुतों के ख़याल में
ऐसा दिया था क्यों मुझे परवरदिगार दिल
आओ जो मेरे घर में तो सौ जान से करूँ
चितवन पर आँख सदक़े अदा पर निसार दिल
होता नहीं है ईद को भी ग़म ग़लत 'दिलेर'
यारान-ए-रफ़्तगाँ का बना सोगवार दिल
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