दिल जो शाइस्ता-ए-जफ़ा न हुआ

By nashad-kanpuriJune 17, 2022
दिल जो शाइस्ता-ए-जफ़ा न हुआ
लज़्ज़त-ए-ग़म से आश्ना न हुआ
तू कभी पास से जुदा न हुआ
दिल मगर सूरत-आश्ना न हुआ


ज़िंदगी का मज़ा वो क्या जाने
जिस को मरने का हौसला न हुआ
हम को शिकवा रहा जुदाई का
और तू पास से जुदा न हुआ


तुम से कहने से फ़ाएदा कोई
ख़ैर जो कुछ हुआ बुरा न हुआ
सोचते ही रहे कहीं न कहीं
न हुआ अर्ज़-ए-मुद्दआ न हुआ


याद करते हैं हुस्न-ओ-इश्क़ हमें
मर के भी ख़त्म सिलसिला न हुआ
दाम-ए-उल्फ़त में जो फँसा 'नाशाद'
हो के आज़ाद भी रिहा न हुआ


75456 viewsghazalHindi