दिल को ज़रा क़रार था वो भी नहीं रहा

By najma-shaheen-khosaNovember 10, 2020
दिल को ज़रा क़रार था वो भी नहीं रहा
आँखों को इंतिज़ार था वो भी नहीं रहा
वो साथ था तो साथ में मेरी भी ज़ात थी
मेरा कहीं शुमार था


वो भी नहीं रहा
उस से हुए जुदा तो फिर ख़ुद को भी खो दिया
ख़ुद पर जो ए'तिबार था वो भी नहीं रहा
दामन में कोई चाँद


सितारा न आफ़्ताब
जुगनू पर इंहिसार था वो भी नहीं रहा
झेली थीं जिस के संग ही ये रंजिशें कभी
इक दल ही ग़म-गुसार था वो भी नहीं रहा


उलझा था मेरे दिल में जो मुद्दत से इक सवाल
लब पर जो बार बार था वो भी नहीं रहा
जिस पर चराग़ रोज़ जलाती थी रात को
दिल में जो इक मज़ार था वो भी नहीं रहा


मुद्दत से उस की राह में दिल था बिछा हुआ
सोचों में वस्ल-ए-यार था वो भी नहीं रहा
तक़दीर की असीर हूँ जिस के लिए ये दिल
मुद्दत से अश्क-बार था वो भी नहीं रहा


मा'बूद मेरे मेरा मुक़द्दर तू देख ले
ख़ुद पर जो इख़्तियार था वो भी नहीं रहा
57967 viewsghazalHindi