हाए तक़दीर के मैदाँ में सजी होती है ज़िंदगी से भी सज़ा कोई बड़ी होती है एक दुनिया है जो ग़ैरों से उजड़ जाती है एक दुनिया है जो अपनों से जुड़ी होती है एक रफ़्तार के आगे न कभी बढ़ पाए वक़्त की तार तो पहले से कटी होती है कोई एहसास-ए-तमन्ना नहीं होता उन को ज़िंदगी जिन की भी टुकड़ों में बटी होती है बुझ नहीं पाती कभी मिल के भी दोबारा फिर वो जो इक आग जुदाई की लगी होती है