हवा को चीर के उस तक सदा अगर पहुँचे

By sayyad-qais-razaNovember 17, 2020
हवा को चीर के उस तक सदा अगर पहुँचे
मुहाल है कि मदद को न चारागर पहुँचे
दयार-ए-इश्क़ को राह-ए-सिनाँ पे चलते हुए
जहाँ पे जिस्म न पहुँचे वहाँ पे सर पहुँचे


ठिकाना दूर था और सामना हवा का भी
पहुँच न पाए परिंदे सो उन के पर पहुँचे
ज़ईफ़ पेड़ निशानी था जो मोहब्बत की
वो कट चुका था मुसाफ़िर जो लौट कर पहुँचे


ये एक आह मोहब्बत की तर्जुमान नहीं
बहुत तवील थे क़िस्से जो मुख़्तसर पहुँचे
दुआ-ब-दस्त पस-ए-दर थी इंतिज़ार में माँ
हम एक शब ज़रा ताख़ीर से जो घर पहुँचे


पहुँच तो जाती है हर बात बात का क्या है
मज़ा तो जब है कि इस बात का असर पहुँचे
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