हिसार-ए-दर्द सा मैं सई-ए-राएगाँ सा मैं

By bimal-krishn-ashkOctober 28, 2020
हिसार-ए-दर्द सा मैं सई-ए-राएगाँ सा मैं
ये शो'ला शो'ला फ़ज़ा और धुआँ धुआँ सा मैं
पहेलियाँ सी मिरे इर्द-गिर्द बिखरी हुईं
हुज़ूर-ए-वक़्त कोई लम्हा-ए-गिराँ सा मैं


क़दम क़दम नए उन्वान मुँह उठाए हुए
किसी रिवायत-ए-कुहना की दास्ताँ सा मैं
किसी गुज़रते हुए सानेहे का लम्हा तू
और एक लम्हे की ख़ातिर रवाँ-दवाँ सा मैं


मैं इंतिज़ार की तक़्दीस तू शिकस्त-ए-वफ़ा
तू दाएरों का मकीं दर्द-ए-ला-मकाँ सा मैं
तमाम सम्त वही शोर में फ़क़त मैं हूँ
कहाँ ये शोर कहाँ एक बे-ज़बाँ सा मैं


मुझे बना के तिरी आँख खुल गई जैसे
बिखर गया हूँ यहाँ ख़्वाब-ए-राएगाँ सा मैं
हज़ारों ख़्वाहिशें लाखों अलम मिरे हमराह
रगों का 'अश्क' कहाँ जाने कारवाँ सा मैं


37631 viewsghazalHindi