जो तुझ से शोर-ए-तबस्सुम ज़रा कमी होगी

By wahshat-raza-ali-kalkatviNovember 24, 2020
जो तुझ से शोर-ए-तबस्सुम ज़रा कमी होगी
हमारे ज़ख़्म-ए-जिगर की बड़ी हँसी होगी
रहा न होगा मिरा शौक़-ए-क़त्ल बे-तहसीं
ज़बान-ए-ख़ंजर-ए-क़ातिल ने दाद दी होगी


तिरी निगाह-ए-तजस्सुस भी पा नहीं सकती
उस आरज़ू को जो दिल में कहीं छुपी होगी
मिरे तो दिल में वही शौक़ है जो पहले था
कुछ आप ही की तबीअत बदल गई होगी


बुझी दिखाई तो देती है आग उल्फ़त की
मगर वो दिल के किसी गोशे में दबी होगी
कोई ग़ज़ल में ग़ज़ल है ये हज़रत-ए-'वहशत'
ख़याल था कि ग़ज़ल आप ने कही होगी


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