कोई जब मिल के मुस्कुराया था
By farah-iqbalOctober 29, 2020
कोई जब मिल के मुस्कुराया था
अक्स-ए-गुल का जबीं पे साया था
ज़ख़्म-ए-दिल की जलन भी कम थी बहुत
गीत ऐसा सबा ने गाया था
शब खुली थी बहार की सूरत
दिन सितारों सा जगमगाया था
ऐसे सरगोशियाँ थीं कानों में
कोई अमृत का जाम लाया था
ख़्वाब कोंपल भी थी तर-ओ-ताज़ा
आरज़ू ने भी सर उठाया था
जिस ने मसहूर कर दिया था 'फ़रह'
एक जादू सा एक छाया था
अक्स-ए-गुल का जबीं पे साया था
ज़ख़्म-ए-दिल की जलन भी कम थी बहुत
गीत ऐसा सबा ने गाया था
शब खुली थी बहार की सूरत
दिन सितारों सा जगमगाया था
ऐसे सरगोशियाँ थीं कानों में
कोई अमृत का जाम लाया था
ख़्वाब कोंपल भी थी तर-ओ-ताज़ा
आरज़ू ने भी सर उठाया था
जिस ने मसहूर कर दिया था 'फ़रह'
एक जादू सा एक छाया था
10069 viewsghazal • Hindi